Sunday, July 24, 2011

कड़ी पर कड़ी लगायी जा रही है


बरसो बनकर रहा हमसफ़र ''मधुर''




और आज फिर




मेरे पैरो पर




घडी लगायी जा रही है .....!




जब सावन आया तो मुझे




प्यासा रखा ,




जलिसे जर दोस्त पर




पैसो की झड़ी लगायी जा रही है ...!




आग लगी है ,




दिल -ए -शहर जलेगा ,




यु ही बेवजह




कड़ी पे कड़ी लगायी जा रही है ........!




शहर जनता है हुनर ,




हमारें ''मधुर'' हाथो का ।




देखते है कैसे मख लिश को




हथकड़ी लगायी जा रही है ..........!







मधुकर ''मधुर''




जलिसे =मख्खन बाज ,जर दोस्त = आस पास बैठने वाले


मख लिश = बिरोध करने वाला




Friday, November 6, 2009

उडो,की ये वक्त है उड़ने का

वक्त से कोई गिला ना रहे ,
जिन्दगी से कोई सिला ना रहे !

उडो,की ये वक्त है उड़ने का ,
क्या पता कल आकाश का रंग नीला न रहे !

रात भर क्यों जागो क्या पता ,
कल सूरज ही निकला न रहे !

आज रंग मे हो गोरी ,
क्या पता ,कल वो रंगीला ना रहे !

मधुकर(मधु)

.............मेरा दर्द ..............

लोग प्यासे को पानी देते नहीं ,
सागर मे हाँथ डुबो देते है .......!
बहुत कुछ पाने छाह में
अपनाअस्तित्व ही खो देते है ........!

एक हम है " मधुर " दूसरो
की खुशियों के लिए जलते है ,
और देख कर
गम औरों का रो देते है .......!

तिलिश्म देखिये हमारे हाथो का
काँटों से कुरेदते है
अपने ही जिस्म को
और ख़ुशी मिली अगर
कही और बो देते है ...........!
(मधुर )

............. ..... सिमरन ...................

तुम ही बताओ सिमरन कुदरत का ये कैसा मोंन है !

पल भर जीने के लिये हम कितना मरते है ,
और जब मौत हो करीब हम कितना डरते है ,
अगर हम आगे नहीं तो पीछे हमारे कोंन है
lतुम ही बताओ सिमरन कुदरत का ये कैसा मोंन है !

रुक रुक कर चलती है सांसे
और जिन्दिगी पल भर के लिये रूकती नहीं ,
दौड़ के इस महाकुम्भ में कुदरत का ये कैसा मोंन है l
तुम ही बताओ सिमरन कुदरत का ये कैसा मोंन है !

जिसे दुदने के लिये हम ने अपना दिल जला दिया ,
और सारे शहर में आग लगा दिया ,
देखु उस धुएं के पीछे छुपा कोंन है ल
तुम ही बताओ सिमरन कुदरत का ये कैसा मोंन है !

मै तो बद्जुबा हूँ सिमरन ,
मै तो बोलूँगा ,
देखता हूँ ये खुदा कबतक मोंन है !
तुम ही बताओ सिमरन कुदरत का ये कैसा मोंन है !

मधुकर (मधुर)

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